श्रवणकुमार के अंतिम शब्द
इस अलक्षित बाण से किया अकारण घात, चलो इसे भी नियति माना
किंतु,हे राजपुरुष! मेरे प्यासे माता-पिता को थोड़ा नीर पिलाते जाना।
वे दोनों हैं नेत्रहीन, नहीं सकते कुछ देख
कैसे सह सकेंगें युवा पुत्र का मृत्यु-संदेश
उनकी पीड़ा के आगे कुछ नहीं मेरी पीड़ा
कहीं प्राण न हर ले उनका असह्य क्लेश
पहले प्यास बुझा देना दोनों की फिर जो भी है सच, बतलाना
हे राजपुरुष! मेरे प्यासे माता-पिता को थोड़ा नीर पिलाते जाना।
उनसे ये कहना,मैं था उनका पुत्र हतभाग्य
पूरी कर न सका उनकी आस तीर्थाटन की
जो एक साध थी माता-पिता की पद-सेवा
वह साध अब अधूरी ही रह गई मेरे मन की
तुम्हारे इस अविचारित कर्म का जाने क्या मूल्य पड़ेगा चुकाना
हे राजपुरुष! मेरे प्यासे माता-पिता को थोड़ा नीर पिलाते जाना।
मैं छोड़ आया हूँ वन-सघन के मध्य उन्हें
वे कुछ श्रांत,विकल,आशंकित,कातर होंगें
पुत्र की परिचित पदचाप सुनने को अधीर
वे क्षण-क्षण,निरंतर बहुत ही चिंतातुर होंगें
यदि हो सके तो अपनी पदचापों के स्वर को उनसे जरा छिपाना
हे राजपुरुष! मेरे प्यासे माता-पिता को थोड़ा नीर पिलाते जाना।
अब और नहीं कुछ कहा जा रहा है मुझसे
भंग-सी हो रही है साँस, छूट रही है काया
यह जीवन उस माता-पिता को ही अर्पित
जिनके कारण मैंने ये जीवन अपना पाया
उन दोनों के परम पावन चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम पहुँचाना
हे राजपुरुष! मेरे प्यासे माता-पिता को थोड़ा नीर पिलाते जाना।