इस बार अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदेगा भी और लौटेगा भी।
नियति ने गहन समर में कुछ जाल रचे अप्रमेय
खड़े सामने कर्ण, कृप, द्रोण और दुर्योधन दुर्जेय
आयु थोड़ी छोटी है मगर साहस की माप नहीं है
जहाँ हृदय में अभय बसा है, वहाँ संताप नहीं है
अभय हृदय का रथ अजेय बढ़ेगा भी और पहुँचेगा भी।
माता की कोख में पिता से सुनी अधूरी कहानी थी
उन्होंने उतनी बता दी थी जितनी उनको बतानी थी
उस टूटी कड़ी का केवल अगला सूत्र पिरोते जाना है
उत्तराधिकार सिद्ध नहीं,उस पर अधिकार जताना हैनव पौरुष अपनी नयी कथा रचेगा भी और कहेगा भी।
पिता दूर, तात चारों अब भी कुछ बाहर खड़े हुए हैं
जिनकी जितनी सीमा है, उतनी सीमा में पड़े हुए हैं
जो कुछ असीम की साध रखे वह नर अलबेला है
जयघोष को संसार खड़ा,फिर कौन यहाँ अकेला है योद्धा आज युद्ध अकेला लड़ेगा भी और जीतेगा भी।
यह सही है,जो सामने है, वह कुछ कठिन,दुष्कर-सा है
मगर जहाँ पर संघर्ष का ताप वहीं विजय-मेघ बरसा है
जिस समय ने व्यूह रचा,उसका करना बस मंथन भर है
यही समय अमृत उगलेगा, यह नियम अटल, अनश्वर हैसाधक अपना साध्य महान गढ़ेगा भी और पायेगा भी।