बहुत दिन बीते,हम,हमसे ही नहीं मिले। कभी इनकी,कभी उनकी बातों मेंउलझे हुए दिन, मदमाती रातों मेंमैं गिन भी नहीं पाया, आँगन में कितने फूल खिलेबहुत दिन बीते,हम,हमसे ही नहीं मिले। कुछ सुलझी,कुछ ज्यादा उलझ गईंकुछ ठंढी पड़ीं,कुछ फिर सुलग गईंइन दास्तानों का क्या है, इनके चलते रहे सिलसिलेबहुत दिन बीते,हम,हमसे ही नहीं मिले। पीछे मुड़ …
Category Archives: Uncategorized
कविवार (My Sunday Poetry)
यादों के उजाले में गुजरा हुआ हर मंजर देखा हैछोटी-सी आँखों में मैंने एक गहरा समंदर देखा है इन खंडहरों के सन्नाटे को यूँ चीखकर न तरसाओइन्होंने कभी अपने भीतर एक पूरा शहर देखा है कुछ तो सहारे की मुझे तुमसे उम्मीद होगी जरूरइसलिए तेरी इन नजरों को मैंने एक नजर देखा है मेरे हद …
कविवार (My Sunday Poetry)
मैं आखिर क्यों तुमको चाहूँ उम्मीद से ज्यादाजब जिंदगी से ज्यादा यहाँ मुझे जीना नहीं है जो मेरी नजरों को देखने का बदल दे सलीकातेरी इन नजरों का तीर इतना भी पैना नहीं है इस संसार में अपना कौन है और पराया कौनजहाँ से लौटना तय है,किसी को रुकना नहीं है जिस दौर से आज …
कविवार (My Sunday Poetry)
जिस मोड़ पर गए थे तुम मुझे छोड़ करमेरा सब कुछ ठहरा हुआ है अब भी उसी मोड़ पर मुझे उम्मीद है, सब कुछ से नाता तोड़ करतुम फिर कभी चले आओगे, यहीं, इसी मोड़ पर वो सड़क जो जाती है दूर सबसे मुँह मोड़ करमुड़ कर फिर वह भी मिलती है यहीं,इसी मोड़ पर …
कविवार (My Sunday Poetry)
ख्वाबों का पड़ाव अभी भी आसमानी-सा हैइन आँखों में अब भी कुछ पानी-पानी-सा है साँसों के आने-जाने के बीच जो एक लम्हा हैउसी लम्हे के भीतर में कुछ जिंदगानी-सा है जिस प्यार में अब भी कुछ पाने की तमन्ना हैवह प्यार, प्यार नहीं है, कुछ मेहरबानी-सा है दिल का दर्द हम इस जुबां से बोलेंगे …
कविवार (My Sunday Poetry)
कोहरे से लिपटी दिशाओं सेएक किरण आना काफी हैअँधेरा कितना भी गहरा होएक दीप जलाना काफी है। तुमसे मैंने कब बोला है येसब अदाएँ कर दो नाम मेरेबस मुझे देखकर चेहरे सेतेरा जुल्फें हटाना काफी है। जो बुरे लगे उनकी बुराई कोकब तक उन्हें तुम बखानोगेउनके आगे बस अपने भीतरकुछ अच्छा दिखाना काफी है। कौन …
कविवार (My Sunday Poetry)
लो, मैंने तुमको अपना सर्वस्व मानातुम मुझे बस अपना हिस्सा मान लोमैंने तुमको अपना संसार कह डालातुम मुझको केवल खुद-सा मान लो। सपनों की मंजिल और कोई नहीं हैसूखी पड़ीं आँखें युगों से रोईं नहीं हैंदो बूँद आँसू जरा आँखों से गिरा लूँतुम इन दो बूँदों को दरिया मान लो। इस कहानी की केवल सच्चाई …
कविवार (My Sunday Poetry)
मैं नींद बनकर दो पल को ठहर लूँतुम ख्वाब बनकर इन आँखों में आनामैं पंखुड़ी बन तेरी प्यास पालूँतुम ओस बनकर तपन मेरी मिटाना। एक हद तक हम सब कुछ सहेंगेंएक हद तक हम कुछ भी न कहेंगेंमगर मौन होने लगे जब भी भारीगीत बनकर इन होठों पर गुनगुनाना। याचना ये नहीं बस समर्पण हैप्रेम …
कविवार (My Sunday Poetry)
एक दिखाते हैं और एक सबसे छिपा कर रखते हैंदो दिल सीने में लेकर जीते हैं लोग जिंदगी अपनी दुनिया जो जान जाए वो दर्द कैसा, वो खुशी कैसीजो बताया नहीं वो दर्द अपना है,वही खुशी अपनी वो मुझे चाहते हैं इतना और मुझसे कहते भी नहींहर मोहब्बत को प्यारी होती है यही बेबसी अपनी …
कविवार (My Sunday Poetry)
कृष्ण की प्रतीक्षा समय के इस छोर पर भी एक रण सजा हैभ्रांत दिशा है और भ्रांत हैं कर्म की रेखाएँकृष्ण पुनः प्रतीक्षा कर रहे हैं, एक नए पार्थ कीजो स्वार्थ के व्यूह से निकल परमार्थ-सृजन करता हो। द्वापर की धूमिल वर्जनाएँ आज बहुत सघन हैंजब मन का विकार श्रृंगार-सम लगता होऔर जब अपना मन …