तुम एक कली पारिजात कीमैं एक भ्रमर राह भूला हुआतुम चाँदनी की अठखेलियांऔर मैं हूँ विवश प्रतीक्षा भोर की ! तुम स्वप्न की हो झाँकी मदिरमैं जड़ निद्रा अंतिम प्रहर कीतुम कामना की फलित सिद्धिमैं मौन परिक्रमा साँसों के डोर की ! तुम प्रशांत लहरी सरिता कीमैं एक उछली चंचल बूँद हूँतुम मूर्त अनुभूति यथार्थ …
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कविवार (My Sunday Poetry)
कविवार मन में थोड़ा धीर भरो, सारे बवंडर थम जाएँगेंरमते-रमते हम इस दौर में भी कभी रम जाएँगें उनकी यादों को अब मैंने आदत में बदल डालाअब ये यकीन है वे हमको याद जरा कम आएँगें कुछ पल ऐसे गुजरे जो हृदय चीर कर गुजर गएउन पलों में ऐसे रंग भरेंगें, वे फूल-से बन जाएँगें …
कविवार (My Sunday Poetry)
तुमसे चलकर तुम तक आए हैंबस हम इतना ही चल पाए हैं दिल की मंजिल उनका दिल हैनयनों ने बीच में रस्ते बनाए हैं उन्होंने कहने को सब कह डालामगर कहे कम, ज्यादा छिपाए हैं पगडंडियों के वे उजाले छूट गएअब छत पर थोड़ी धूप उगाए हैं वक्त कुछ वक्त में बदल लेता पालेजो कल …
कविवार (My Sunday Poetry)
ये जानता हूँ तुम दिल मेरा इनकार कर दोगीमगर एक बार तुमसे पूछने में हर्ज ही क्या है वो हमें अपना न समझें ये उनका मामला हैहमें उनको अपना सोचने में हर्ज ही क्या है इन हाथों में मिली लकीरों का जो इरादा होएक लकीर अपनी खींचने में हर्ज ही क्या है माना कुछ स्वप्न …
कविवार (My Sunday Poetry)
इस बार अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदेगा भी और लौटेगा भी। नियति ने गहन समर में कुछ जाल रचे अप्रमेयखड़े सामने कर्ण, कृप, द्रोण और दुर्योधन दुर्जेयआयु थोड़ी छोटी है मगर साहस की माप नहीं हैजहाँ हृदय में अभय बसा है, वहाँ संताप नहीं है अभय हृदय का रथ अजेय बढ़ेगा भी और पहुँचेगा भी। माता की …
कविवार (My Sunday Poetry)
बह जाता है मेरे नीचे से हमेशा एक पूरा संसारजब मैं किसी पुल से गुजरता हूँछिटक जाती हैं कितनी गलियाँ, चौराहे,घर-द्वारजब मैं किसी पुल से गुजरता हूँ। कुछ दूर के आशियानों तक पहुँच बनाने के लिएकई पास वाले घरौंदे ही हो जाते हैं पहुँच के पारजब मैं किसी पुल से गुजरता हूँ। वे जो कुछ …
कविवार (My Sunday Poetry)
हाँ, ये मालूम है कि ये पर्वत हिलेंगे नहीं अपनी जगह सेअपने हौसलों से इसे हिलाने की थोड़ी कोशिश तो करो ये जो वक्त के दरवाजे हैं, माना ये खुले नहीं कई युगों सेइन्हें कभी धीमे से खटखटाने की थोड़ी कोशिश तो करो वो जो नजरें चुरा लेते हैं तुमसे हर बार इन महफिलों मेंउनसे …
कविवार (My Sunday Poetry)
जिसे सहना कठिन था वह दुःख थाजो बिना बिताए बीता वह सुख थाजिसकी प्रतीक्षा थी,वह सहजता थीजो इन सबके बीच है वह जीवन है। जहाँ पर कोई चाह है वहाँ कामना हैजहाँ दग्धकारी ताप है वहाँ वासना हैजहाँ तर्कविहीन त्याग है वहाँ प्रेम हैइन सबका जो मिश्रण है वह हृदय है। जो दयाजनित है वह …
कविवार (My Sunday Poetry)
अपने सीने में जिंदा हम अब भी तेरा अहसास रक्खे हैंझड़े जो तेरी जुल्फ से वो सूखे फूल अपने पास रक्खे हैं तेरे आने की आहट हम कहीं उलझनों में सुन ही न पाएँकुछ इसलिए ही हम थोड़ी धीमी अपनी साँस रक्खे हैं ये जो भाग-दौड़ है दुनिया की उसकी बस वजह एक हैलोग पा …
कविवार (My Sunday Poetry)
साँसों में अपनी हसरतों को छुपा लें कैसेदिल के भीतर भला दिल को संभालें कैसे तेरी नजरों के नजारें हैं इतने ज्यादा नशीलेहम इन नजरों से अपनी नजरें चुरा लें कैसे एक मुद्दत से सपनों की हकीकत से जंग हैकोई सपनों को अपनी आँखों मे पाले कैसे जिन्हें आंसुओं की कीमत मालूम है ही नहींउनके …