आँखें वही रहती हैं, बस स्वप्न सलोने बड़े हो जाते हैंहम बड़े नहीं होते हैं, हमारे खिलौने बड़े हो जाते हैं। गुड्डे-गुड़ियों का जब खेल गयातब हम बस्ते-किताबें थाम चलेफिर रूप-लवण की प्यास जगीफिर धन-दौलत के अरमान पले मन में इच्छाएँ भर लेने के बस कोने बड़े हो जाते हैंहम बड़े नहीं होते हैं, हमारे …
Author Archives: ashishlekhni
कविवार (My Sunday Poetry)
ये गलतफहमियाँ छोड़ दो कि मैंने तेरी सूरत को चाहा थामैंने ये चेहरा नहीं, चेहरे में छिपी मासूमियत को चाहा था तेरे तीखे नैनों से घायल हो जाऊँ, मैं इतना कमजोर नहींमैंने इन नैनों के पीछे छिपी सुनहरी नीयत को चाहा था तुम्हें इतनी शिकायतें हैं, मुझे तुमसे बस एक शिकायत हैशिकायत नहीं,शिकायत न करने …
कविवार (My Sunday Poetry)
सुना है, ये इसी देश के वासी हैंमगर मजदूर हैं,बस इसीलिए प्रवासी हैं ! इनके श्रम,इनके पसीने पर पूरा हक है हमाराइनकी हड्डियों के पुर्जों से हमने गढ़े कारखानेहमारे धन और ऐश्वर्य पर हक क्यों हो इनकाइनके पास जो है,ये जानें,इनकी किस्मत जाने! हमारी ही सड़क के उस पार के झुग्गियों के निवासी हैंमगर मजदूर …
कविवार (My Sunday Poetry)
मुझे है विश्वास….सम्पूर्ण विश्वासये जो मेरी दुनिया है, ये बहुत प्यारी हैऔर ये कभी खत्म नहीं होगी। बिना छुए यूँ ही नहीं गिर जाएँगे इन बागों के फूलऔर इन वीरान पड़ी सड़कों परफिर से होगी रेलमपेलफिर इन व्यस्त चौराहों पर कोई अचानक पकड़ कर हाथबहुत करीब आकर कानों में धीरे से कह देगा कोई बात …
कविवार (My Sunday Poetry)
सपनों के रास्तों से तुम मेरे मन के आँगन में आ जाओसुना है,इन दिनों शहर की सड़कों पर पाबंदियां बहुत हैं तुमको सुनाने के लिए कोई बात नहीं है मेरे इस दिल मेंतुम्हें सुन लेने को मेरे सीने के भीतर खामोशियाँ बहुत हैं ये जमीं,ये आस्मां को रचने की भला जरूरत ही क्या थीमेरे रहने …
कविवार (My Sunday Poetry)
आकाश अनत और दिशा अछोर,हाहाकार सागर-गर्जनराम तपोलीन, बीते दिन तीन,करते तट पर पूजन-साधनन गगन हिला,न ये अवनि डोली,तिल भर न डिगा समुद्रये उदधि अपार,हों कैसे पार,करें कैसे लंका-रावण-मर्दन तनी भृकुटि राम की,’हे सौमित्र,लाओ धनुष,अक्षय तूणीरये अर्णव-प्रमाद करूँ भंग, चला कर अमोघ आग्नेय तीरजग ने राम की केवल देखी है विनय ही,अब देखेगा कोपकर संधान,एक ही …
कविवार (My Sunday Poetry)
सब कुछ समेटते हुए कहीं जिंदगी ही पीछे छूट गई थीचलो आज सब छोड़ कर फिर से जिंदगी समेट लेते हैं हमें जानने की फुर्सत न थी,कब दिन बीता,कब रात गईअब छत पर बिछी थोड़ी धूप,थोड़ी चाँदनी समेट लेते हैं सुख की चाह में निकले घर से और घर को ही भूल गएये बेहतर है …
कविवार (My Sunday Poetry)
हे भारत भूमि भास्वर, तुमसे जीवन उदय हैसृष्टि का अथ है, प्रलय पर सबल विजय है। पालन का अनुशासन,व्रत-संयम-संसाधनशुद्धि-सिद्धि की वृद्धि हेतु सजग समर्पणतप की आभा,सुकृत पौरुष का दृढ़ निश्चय हैहे भारत भूमि भास्वर, तुमसे जीवन उदय है। सात्त्विक भोजन,सात्त्विक चिंतन व साधनसत के बल से रजस, तमस पर आरोहणजीने की कला का तू ही …
कविवार (My Sunday Poetry)
कुछ आपाधापी में शायद बड़ी दूर चले आए थेअब वक्त कह रहा है,कुछ दिन ठहरो अपने घर में अपने आँगन के कोने की छाँव में रुक लो जरा तुमसुना है, इन दिनों खतरे बहुत फैले हैं सारे शहर में ये पत्ते भूल गए,पुराना दरख्त ही उनका अपना थाजाने किस धुन में बह गए, हवा की …
कविवार (My Sunday Poetry)
बल भी है,सामर्थ्य भी है,संयम भी,संघर्ष भीवेदना की संवेदना है और संवेदना में हर्ष भीइस संकट में शक्ति कहाँ जो दर्प तोड़े हमाराहम उबरे थे,हम उबरे हैं,हम उबर जाएँगे। प्रबल झंझावातों में भी नस में अपनी रवानी हैविपदाओं को दम से हराने की अपनी कहानी हैतनिक धीर धरो,उठने भी दो इन उग्र ज्वारों कोये उतरे …