दिन के नसीब में ही नहीं था कभी मिलन रात सेइस शाम में उसकी धुँधली-सी कसक उभर गई वह जो बात रही अधूरी इस जिंदगी के भँवर मेंउसकी ठंढी छाया सपना बन आँखों में ठहर गई ये रेत हैं किनारों के जो प्यासे हैं कई-कई युगों सेये बात और है इनके बगल से एक नदी …
Author Archives: ashishlekhni
कविवार (My Sunday Poetry)
ये रास्ते, वो मंजिल, वे सारे ख्वाब पुराने हुएइन इरादों के ठहरने के कुछ और ठिकाने हुए जो लकीर खींच रखी थी जमाने ने हमारे लिएउस लकीर को छोड़े हुए हमें कई जमाने हुए जबसे हमने सीख लिया मन की बातें छिपानातबसे लोग सारे कहने लगे, हम अब सयाने हुए उनसे मेरा रिश्ता क्या है, …
कविवार (My Sunday Poetry)
हर कहानी के पीछे छिपी एक और कहानी हैकुछ समझ में आई,कुछ अब भी अनजानी हैतुम तोल पाओगे नहीं मेरी अनकही गहराइयाँतुमने मेरी खुशी तो देखी मगर मेरा दर्द न पूछा। कुछ खिली कलियाँ हैं,कुछ फूल मुरझाए हुएइन डालियों पर अनोखे रंग हैं कुछ छाए हुएइन भ्रमरों ने किया है केवल बेसुध रसपान हीतुमने ये …
कविवार (My Sunday Poetry)
ठहरी हुई हसरत कुछ और सफर करती हैतुम्हारी मौजूदगी इतना तो असर करती है तेरी परछाइयों से ही मैंने वक्त को मापा हैयही मेरी शाम,सुबह और दोपहर करती है यूँ तो चाहता नहीं तेरी यादों से परेशान होनामगर जाने क्यूँ ये परेशान इस कदर करती है वो जिसका होना तुमने बेकार समझा है सदासंभव है,उसकी …
कविवार (My Sunday Poetry)
श्रवणकुमार के अंतिम शब्द इस अलक्षित बाण से किया अकारण घात, चलो इसे भी नियति मानाकिंतु,हे राजपुरुष! मेरे प्यासे माता-पिता को थोड़ा नीर पिलाते जाना। वे दोनों हैं नेत्रहीन, नहीं सकते कुछ देखकैसे सह सकेंगें युवा पुत्र का मृत्यु-संदेशउनकी पीड़ा के आगे कुछ नहीं मेरी पीड़ाकहीं प्राण न हर ले उनका असह्य क्लेश पहले प्यास …
कविवार (My Sunday Poetry)
दिन निकलता गया,धूप पिघलती रहीदेहरी पर ये एक ज्योति भी जल गयीकुछ कहना रहा और कुछ सुनना रहाबात बाकी ही रही, शाम भी ढल गयी! पहले से ही तो ये पर्वत थे कठोर बहुतइन पत्थरों में ये कैसी कसक रह गयीकुछ बूँदें पिघलीं इनके सीने से विवशऔर देखते-देखते एक नदी बह गयी! ये सुना है …
कविवार (My Sunday Poetry)
तुम्हें हृदय की कल्पना तो कह दूँ मगरमेरा सत्य भी तुमसे कुछ ज्यादा नहीं है तुमको वेदना का नाम तो दे भी दूँ मगरइस वेदना को छोड़ने का इरादा नहीं है तुमने सीखा बहुत दृष्टि से ओझल होनामगर तुमने इस मन को तो बाँधा नहीं है इन जागती इच्छाओं के नियम कठिन हैंलेकिन सपनों की …
कविवार (My Sunday Poetry)
जिन मंजिलों को सोचना भी मुश्किलहम बिल्कुल वहीं तक जाकर लौटे हैं कुछ समय की लहरों ने समझा दियाकुछ हम खुद को समझा कर लौटे हैं रेतीली राह पर उनके पाँव ना झुलसेंहम उस राह पर आँसू बहाकर लौटे हैं उन्हें हो ना शिकायत राज छिपाने कीहम दिल का हर हाल सुनाकर लौटे हैं मुझे …
कविवार (My Sunday Poetry)
बहुत पास कहीं कुछ छूट गया है ! कभी समय की इस तरंग से टकराकरकभी जर्जरता के सब चिन्ह छिपाकरजो बाहर से जितना सँवरा हुआ हैउतना ही भीतर-भीतर टूट गया हैबहुत पास कहीं कुछ छूट गया है ! वैसे, वो कुछ कहे बिना रह पाते नहीं हैंमगर हम पूछ लें तो कुछ बताते नहीं हैंबस …
कविवार (My Sunday Poetry)
ये बात और है कि वो बहुत अपने भी नहीं लगतेमगर पहले की तरह अब वे अजनबी नहीं लगते जिस दर्द की दवा नहीं उससे दोस्ती ही अच्छी हैहर वक्त आँसू गिराने के कायदे सही नहीं लगते उन छोटी बातों में ही छिपा था राज बड़े होने काजो छोटे हो नहीं सकते,वे बड़े आदमी नहीं …