कविवार (My Sunday Poetry)

जानती हो, मैं मौन क्यों हो जाता हूँ यूँ अक्सरबस इसलिए कि तुम कोई गीत गाओ मेरे लिए मैं रोऊँ, मेरी आँखों में आँसुओं की बूँदें झलकेंउस वक्त भी तुम थोड़ा-सा मुस्कुराओ मेरे लिए सौ बातें तुम्हारे जेहन में घूमा करतीं हों ये मानाकुछ पल के लिए सब भूल कर आओ मेरे लिए अँधेरे और …

कविवार (My Sunday Poetry)

यह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकरकुछ तेरी याद से धुलकर, कुछ मेरी प्यास से धुलकर। सांध्यगीत की ध्वनि सप्तम देकर गई थी जो निमंत्रणउसी ध्वनि के संगीतमय विन्यास से धुलकरयह चाँदनी आई है मधुमास से धुलकर। एक मदिर आसव से भींगी-सी थी तेरी केशों की छायाउस प्रतिच्छाया के मनहर सुवास से धुलकरयह चाँदनी आई …

कविवार (My Sunday Poetry)

याद बहुत तुम आते हो। धूप अभी भी हर दिन आती हैवह कुछ फीकी-सी रह जाती हैरात तो अब भी वैसी ही होती हैमगर वह कुछ थकी-सी सोती हैतुम फिर से दूर ही रह जाते होयाद बहुत तुम आते हो। उतना ही हूँ,जितने पर छोड़ गएपता ही ना चला किस ओर गएकैसे कहूँ मैंने तुम्हें …

कविवार (My Sunday Poetry)

तुम्हारे कहने भर से ही कैसे ये सारा फसाना छोड़ दूँदीवानगी तो छोड़ दी,क्यों दीवाना कहलाना छोड़ दूँ मुझको पता है वहाँ कोई भी इंतजार नहीं करता मेराबेवजह ही सही मगर क्यों उस गली में जाना छोड़ दूँ मेरी दास्तानों से वैसे तो उनको मतलब नहीं कुछ भीमगर अपनी दास्तां मैं उन्हें भला क्यों सुनाना …

कविवार (My Sunday Poetry)

ना जाने शाम को उसी पुरानी-सी शाख परये पंछी आसमान से क्यों फिर लौट आते हैं इन लहरों का ये रेत हुआ न घर कभी अपनामगर ना जाने वे क्या वहाँ अब ढूँढ़ने जाते हैं एक मौसम गुजर गया तो मौसम आया दूसरापुराना छोड़ना था तो क्यों नए रिश्ते बनाते हैं रात-दिन क्यों नाम दें,समय …

कविवार (My Sunday Poetry)

बहन,ये जो सुख है,दुःख हैवो सारा तेरा-मेरा हैये नदिया,ये भँवर,ये आँधीये किनारा,तेरा-मेरा है जिस पथ पर संग चले,उसकाछोर अंतिम तेरा-मेरा हैजहाँ धरा-नभ दोनों मिले,वहक्षितिज रक्तिम तेरा-मेरा है ये वर्जनाएं,वो मान्यताएं हमजिसको जिए,तेरा-मेरा हैवो सारे क्रम,अनुक्रम, उपक्रमजो हमने किए,तेरा-मेरा है वह रीति,नीति, वह प्रतीतिजो हमने गढ़े,तेरा-मेरा हैवो दुसाध्य ऊँचाई,वो शिखरजो हम थे चढ़े, तेरा-मेरा है ओ …

कविवार (My Sunday Poetry)

किसी ने नाम इराक और ईरान रखाकिसी ने अफगान, पाकिस्तान रखाहम अब भी कहते हैं,वह भारत था,भारत ही रहेगा। इसमें भला कैसी शंका है,त्रेता से अपनी ही लंका हैनिर्विवाद ये तथ्य, प्रसंग हैअपना संपूर्ण बंग अभंग है वह सुवर्णभूमि, यह ब्रह्मदेशशाश्वत अपना तिब्बत प्रदेशपशुपतिनाथ की भूमि पुनीतकाश्गर से है अभिन्न अतीत कुछ भूल हुई, कुछ …

कविवार (My Sunday Poetry)

कुछ सवाल हमेशा ही बस सवालों में रहेंजैसे साए के वजूद हर वक्त उजालों में रहें एक अजनबी से हम मिले चंद पल के लिएउम्र भर तक वो जिंदा हमारे खयालों में रहें तुम्हारी मर्जी पर तो हमारा कोई जोर नहींहमारी मर्जी है हम तेरे चाहने वालों में रहें एक जोर लगाने से बदल सकती …

कविवार (My Sunday Poetry)

प्रयत्न चुपचाप होते हैंसफलता शोर करती हैज्योति कोने में जलती हैउजाला हर ओर करती है। श्रेय सिर्फ सूरज का ही नहींदमकती तारिकाओं का भी हैउनकी अपराजेय कोशिश हीइन घनी रातों को भोर करती है। इन पर्वतों का क्या है भलाये माना बहुत ही कठोर हैंदरार इनके सीने में भी होती हैजब हवा वेग जोर करती …

कविवार (My Sunday Poetry)

नदी यूँ ही नहीं मुड़ती है अपने निर्दिष्ट पथ सेजब तक नहीं टकराती है वह इन पत्थरों सेयूँ ही नहीं कोई धारा झरती है झरना बन करजब तक फिसल कर गिरती नहीं वो पर्वतों से। किसी ने अथाह जल डाला होगा सूखी धरा परऐसे ही नहीं लोग इस जगह को उपवन कहते हैंथोड़ा जेठ में …

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