कुछ अँधेरी गलियों ने किरणों का न एक भी तह देखा कुछ ऐसी भी रातें है, जिन्होंने कभी नहीं सुबह देखा इन जमी हुई परतों के भीतर आज किसी को जाना होगा एक दीया वहाँ भी जलाना होगा। कुछ नयनों के कोरकों में आशा की थोड़ी भी छाँह नहीं कुछ मुरझाए चेहरों के भीतर उम्मीद …
Author Archives: ashishlekhni
कविवार (My Sunday Poetry)
इन रातों को कर दो अब थोड़ी-सी और भी लम्बी सारी बातें कहने को ये छोटी-सी रात काफी नहीं है सब के सामने मिल न सको तो छिपकर मिलते रहना दिल मिलने के लिए बस एक मुलाकात काफी नहीं है वो हमको बुरा समझें या हम उनको बुरा समझा करें बातें खत्म करने के लिए …
कविवार (My Sunday Poetry)
कुछ दास्तां ऐसी भी हैं, जो कभी सुनायी न गयी कुछ आँसू की बूँदें बनीं मगर आँखों से बहायी न गयी हमने जुबां से कभी की नहीं तेरे इश्क की चर्चा कहीं ये कसूर नजरों का था इससे सच्चाई छिपायी न गयी फूलों को मसला भी तो वो हाथों में खुशबू छोड़ गए सब कुछ …
कविवार (My Sunday Poetry)
यह आरती का दीप है, इसे बुझने न देना। घने तिमिर को चीर कर एक लौ जली है अग्निशिखा-सी उठने की एक आशा पली है आस्था से पिघल कर कुछ प्रेमाश्रु बहे थे उन्हें दीप में डाला तो ये तीव्र किरण मिली है ये प्रथा है वन्दना की, इसे मिटने न देना यह आरती का …
कविवार (My Sunday Poetry)
इन मंजिलों के वास्ते ही तो सफर किया है मैंने तुम्हारी आँखों में अपना घर किया है ये जुल्फों के बसेरे और नजरों की गलियाँ सच है, खुदा ने तुम्हें पूरा शहर किया है अपनी किसी भी हार से हम हारे नहीं हैं हमने हार का खुद को भी नहीं खबर किया है दो मीठे …
कविवार (My Sunday Poetry)
ज्यादा फर्क तो है ही नहीं तेरे शहर और मेरे गाँव में….. जिस रोटी को हमने अपनी किस्मत की मंजिल मानी है तुम उसे खाकर शुरू करते हो अपनी किस्मत का सफर ज्यादा फर्क तो है ही नहीं तेरे शहर और मेरे गाँव में ! जहाँ बड़ी चाची,छोटी काकी के गोद में पल हम हुए …
कविवार (My Sunday Poetry)
उन यादों की गलियों में यूँ ही आना-जाना लगा रहा नींद तो टूटी मगर सपनों का ताना-बाना लगा रहा यूँ तो जीने की वजह, यहाँ जानते नहीं हैं जीने वाले फिर भी दुनिया में जीने का कोई एक बहाना लगा रहा पत्थर के महल,सोने के कलश कभी किसी के हुए नहीं मगर जाने क्यूँ इनके …
कविवार (My Sunday Poetry)
गैरों को गम-ए-दिल कभी सुनाया नहीं करते और अपनों से कोई राज छिपाया नहीं करते तेरी जुल्फों ने पहले भी क्या कम सितम ढाए हैं उन्हें छज्जे पर ऐसे आकर सुखाया नहीं करते सौ फूलों को छोड़ हमने एक काँटे से दोस्ती की सुना है,मौसम बदलने पर ये मुरझाया नहीं करते थोड़ा और पाने की …
कविवार (My Sunday Poetry)
तेरे-मेरे मिलने की बस इतनी-सी कहानी थी एक प्यासा सागर था, एक नदिया दीवानी थी फिर और हुईं जो बातें, वे सब हो ही जानी थीं एक प्यासा सागर था, एक नदिया दीवानी थी। ये पुष्प-लता,पवन के संग यूँ ही नहीं नाची थी इन दोनों के बीच कोई पहचान पुरानी थी एक प्यासा सागर था, …
कविवार (My Sunday Poetry)
इतनी जल्दी कोई ख्याल बना लेना न मेरे बारे में तुम अभी इस दिल की पूरी दास्तां तुमको सुनाया ही नहीं एक लम्हा ऐसा मिलता कि तुम्हें कह देता सारी बातें बरस पर बरस गुजरे मगर लम्हा कभी आया ही नहीं तुम वफा न सही कोई सजा ही दे देते गुनाह-ए-प्यार का हम ये गुनाह …