कुछ दिन और ये भरम होता तो अच्छा होतावो जरा और भी बेरहम होता तो अच्छा होता जब उसकी गिनती है दोस्तों में तो हाल है ऐसाबेहतर है कि वो दुश्मन होता तो अच्छा होता वे जो दिल तोड़ कर मुस्कुराया करते हैं हमाराउनको भी कोई ऐसा गम होता तो अच्छा होता इतनी बातें की …
Author Archives: ashishlekhni
कविवार (My Sunday Poetry)
तुमसे बस इतना कहना बाकी रहाजो कहने आया था वो कहा ही नहीं एक नदी मेरे सामने से ही बह गईप्यास थी मगर मैं पास गया ही नहीं इस सफर में मंजिलें मिलीं बार-बारमगर सफर ये कभी भी थमा ही नहीं मैं जिनके भरोसे पर अब तक रहा हूँउन्होंने मुझ पर भरोसा किया ही नहीं …
कविवार (My Sunday Poetry)
वह कली जो फूल बन कर न खिल सकीवह बाती जो कभी दीप में न जल सकीवह तारिका जो बादल से न निकल सकीउसका वैभव इस जग ने माना देखा नहींमोल उसका भी जग में मगर कम न था। वह कोई राह जो गुम हो गई बियाबानों मेंवह नदी जो सूख गई तपते रेगिस्तानों मेंवह …
कविवार (My Sunday Poetry)
रिश्ता तो था मगर बेअसर थामैं प्यासा था और वो समंदर था वह मुझको पहचानता था पूरामगर जानता बस नाम भर था इश्क भी था और आरजू भी थीलेकिन जाहिर करने में डर था जिस गली को कहते वो बदनामकभी उसी गली में उनका घर था उससे गुजरा मगर हुआ न उसकावह रास्ता था और …
कविवार (My Sunday Poetry)
ये जो छठ है,ये जीवन का व्रत है। ये निराशा पर आशाओं की सम्पूर्ण विजय हैये भय पर विराजमान हो जाने वाला अभय हैये थकी हुई अन्तरात्मा की सम्यक विश्रांति हैये साधन का अपने साध्य से सचेतन विलय हैये पराजय को जय में बदलने का हठ हैये जो छठ है,ये जीवन का व्रत है। चमकती …
कविवार (My Sunday Poetry)
कृष्ण का प्रतिज्ञाभंग कुरुक्षेत्र के महा-समर का वह दिवस नवम प्रखर थाउन्मत्त काल कराल का पुनः खुला खर मुख विवर थादुर्योधन के शब्दों से आहत गंगापुत्र के शर हुए तीक्ष्णउनके रण-कौशल से पांडव दल में प्रकम्प भयंकर था युधिष्ठिर अस्थिर,भीमसेन का भी तेज कुछ क्षीण हुआआज ये अर्जुन का बाण भी दिशाभ्रांत, लक्ष्यहीन हुआश्रीकृष्ण निःशस्त्र …
कविवार (My Sunday Poetry)
यूँ तो कुछ-न-कुछ बाकी ही रहेगा हमेशा यहाँ पाने के लिएमगर जो हासिल है, क्या वो काफी नहीं ठहर जाने के लिए तुम्हारे पास अदाएँ हैं बहुत जो हँस कर छिपा लेती हो तुममेरे पास मेरी आशिकी के सिवा कुछ नहीं छिपाने के लिए हाँ,यह सही है तेज हवाओं में उड़ जाएँगें कच्चे घरौंदे बहुतमगर …
कविवार (My Sunday Poetry)
कैसे बतलाएँ हम,कितनी दूर चले आएँ हैं! सोचा था दो-चार कदमों पर मुकाम सुहाना होगाकुछ ही क्षणों में इस सफर का कोई ठिकाना होगायही सोचते-सोचते अनगिनत युगों से भरमाए हैंकैसे बतलाएँ हम,कितनी दूर चले आएँ हैं! यह नींद भी रही सपनों की बंदिनी, न जाने कब सेये साँस है गहरी प्यास की संगिनी, न जाने …
कविवार (My Sunday Poetry)
हाँ,उनकी सच्चाइयाँ तो पता चलीं,मगर जरा देर हो गईये कलियाँ फूल बन कर तो खिलीं,मगर जरा देर हो गई धूप बिखरी थी इन गलियों में,यह हमें अब मालूम हुआआखिर बंद खिड़कियाँ तो खुलीं, मगर जरा देर हो गई मैंने अँधेरे में किरणों के निशान खोजने की कोशिश कीएक कोने में फिर बत्तियाँ तो जलीं,मगर जरा …
कविवार (My Sunday Poetry)
मन में आता है मेरे अक्सर यूँ हीकाश तब वैसा न होता,काश अब ऐसा न होता तुम छू कर चले जाते मुझको मगरमन में अहसासों का ज्वार ऐसा उमड़ा न होता चाँद होता,ये तारे टिमटिमाते मगररात तो हो जाती लेकिन ये फैला अँधेरा न होता ये सफर अकेले ही काटना था यदितुम न मिलते और …